सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय मेला तीसरे दिन ही आ गया विवादों में, दिल्ली चुनाव और स्कूल एग्जाम के कारण फीका चल रहा है मेला।
सूरजकुंड मेले के अभी तीन दिन के बाद ही शिल्पकारों के विरोध की वजह से विश्वविख्यात कहे जाने वाला सूरजकुंड मेला विवादों में घिर गया है। लगातार 33 सालों से आयोजित हो रहा सूरजकुंड मेला आज भी अव्यवस्था का शिकार बना हुआ है। हर बाद गिने चुने छोटे देशों के कलाकारों को बुलाकर खानापूर्ति किया जा रहा है। सोमवार को मेले में अनेकों शिल्पकार उस समय सूरजकुंड मेला प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने लगे, लोगों ने जमकर नारेबाजी की । और उस समय कई विदेशी कलाकारों और विदेशी मेहमानों के आगे शिल्पकारों ने जमकर नारेबाजी की। शिल्पकार के जब उनके लिए बैठने की कोई व्यवस्था नहीं हुई। 1 फरवरी को मेले की शुरूआत हुई और तीसरे ही दिन वहां हाय-तौबा मच गई। इससे साबित होता है कि मेला प्रशासन के लिए शिल्पकार कोई मायने नहीं रखते।
बता दें कि पिछले 33 वर्षों से शिल्पकारों के नाम पर इस मेले का आयोजन किया जाता है। केंद्र व हरियाणा सरकार का दावा है कि भारतीय शिल्पकारों को देश विदेश में बेहतर प्लेटफार्म उपलब्ध करवाने के लिए सूरजकुंड में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मेला लगाया जाता है। परंतु हैरत की बात है कि जिन शिल्पकारों के लिए यह मेला लगता है, उनके बैठने के लिए वहां व्यवस्था तक नहीं की जाती। हालांकि यह शिल्पकार मेला प्रशासन को डेढ़ लाख रुपए व इससे अधिक की रकम देकर पंद्रह दिनों के लिए मेले में अपना सामान लेकर आते हैं। मगर सूरजकुंड प्रशासन की कुव्यवस्था की वजह से उन्हें बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है। दरअसल इस मेले का असल आयोजन बेशक दिखाने के लिए शिल्पकारों को प्लेटफार्म उपलब्ध करवाना है, मगर असल वजह राज्य सरकार के अधिकारी व उनके परिवारों को मौजमस्ती करवाना होता है।
मेले में अधिकारी, उनके परिजन, रिश्तेदार व सत्ताधारी नेताओं का कुनबा मेले में मौज करने के लिए पहुंचाता है। अक्सर देखने में आता है कि मेले में अधिकांश अधिकारियों के परिजन मुफ्त में खरीददारी के लिए पहुंचते हैं। फाईव स्टार होटल का आनंद लेते हैं। ऐसे अधिकारी अपने दूर दूर तक के रिश्तेदारों को बुलाकर उन्हें अपना रूतबा दिखाते हैं। अधिकारी व नेताओं को मुफ्त में एंट्री पास की गड्डियां भेजी जाती हैं। कई अधिकारी अपने सीनियर को बुलाकर मेले में पूरी मस्ती करवाते हैं और उनकी कृपादृष्टि पाकर गदगद हो जाते हैं। टूरिज्म विभाग के अधिकारियों के लिए तो यह मेला अपने सीनियर अधिकारियों का आर्शीवाद पाने का जरिया बन गया है।
यदि इस मेले में खर्च होने वाले फंड की जांच हो जाए, तो संभवतय कई चौंकाने वाले परिणाम सामने आ सकते हैं। यह मेला अपने सीने में कई बड़े राज दफन किए बैठा है। सरकारें चाहे किसी भी दल की हो, मगर मेले का लुफ्त उठाने में कोई पीछे नहीं रहता। यही वजह है कि शिल्पकारों के लिए आयोजित मेले में शिल्पकारों को ही सबसे अधिक कष्ट झेलने पड़ते हैं। ये रोना इस बार नहीं बल्कि हर बार का ररहता है। इसके बावजूद सरकार का दावा है कि वह शिल्पकारों को बेहतर प्लेटफार्म उपलब्ध करवा रहे हैं।