भाजपा के पक्ष में चल रही आंधी की रफ्तार हुई कम। सर्वे में बड़खल, पृथला, पलवल,एनआईटी और बल्लभगढ़ में बीजेपी बहुत कमजोर।
भाजपा का मिशन 75 पड़ा खतरे में!
प्रदेश के सियासी माहौल के करवट बदलने से चेंज होने लगे समीकरण
अभी सिर्फ 30 सीटों पर भाजपा का पलड़ा नजर आ रहा भारी
60 सीटों पर प्रत्याशियों का चयन तय करेगा भाजपा का भविष्य
Citymirrors.news-लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक सफलता दर्ज करने के बाद प्रदेश में दोबारा सत्ता हासिल करने के ख्वाब देख रही भाजपा को चौकन्ना हो जाना चाहिए। पिछले 10 दिन के दौरान प्रदेश की सियासी हवा में बदलाव की सुरसुराहट की चर्चा चल पड़ी है जिसके चलते भाजपा के लिए अब मिशन 75 हासिल करना आसान नहीं होगा।
भूपेंद्र हुड्डा के हाथ में कांग्रेस की कमान आने, जेजेपी और बीएसपी का गठबंधन टूटने, टिकटों को लेकर भाजपा में बड़ी बगावत के आसार के चलते आगामी विधानसभा चुनाव के परिणाम बदलते हुए नजर आ रहे हैं।
इस बदले हुए माहौल के कारण भाजपा आज की तारीख में सिर्फ 30 सीटों पर दूसरे दलों पर भारी पड़ती हुई नजर आ रही है। बाकी 60 सीटों के रुझान सभी पार्टियों के प्रत्याशियों के ऐलान के बाद ही क्लियर होंगे। इसका अर्थ यह है कि फिलहाल भाजपा का मिशन 75 खतरे में पड़ा हुआ है
30 सीटों पर भाजपा का पलड़ा भारी
आगामी विधानसभा चुनाव का मिजाज जानने के लिए कई न्यूज़ ने पूरे प्रदेश का गहनता से सर्वेक्षण किया। सर्वे में यह रुझान सामने आ रहा है कि भाजपा पंचकूला, अंबाला शहर, अंबाला कैंट, यमुनानगर, थानेसर, नीलोखेड़ी, इंद्री, असंध, करनाल, घरौंडा, जींद ,पानीपत शहर, पानीपत ग्रामीण, सोनीपत, जुलाना, हिसार, भिवानी, अटेली, कोसली, रेवाड़ी, रोहतक, बहादुरगढ़, बादली, गुड़गांव, बादशाहपुर, सोहना, बल्लभगढ़ ,तिगांव फरीदाबाद की सीटों पर ही विरोधी दलों पर भारी पड रही है।
कई न्यूज़ के खास सर्वे में यह बात सामने आई है कि कालका, नारायणगढ़, मुलाना साडोरा जगाधरी रादौर, लाडवा, शाहबाद, पेहवा, कैथल, पुंडरी, गुहला चीका, कलायत, उचाना, नरवाना, सफीदों, इसराना, समालखा, गन्नौर, गोहाना, बरोदा, समालखा, राई, किलोई, बेरी, महम, कलानौर, डबवाली, कालांवाली, रानिया,, ऐलनाबाद, सिरसा, फतेहाबाद, रतिया टोहाना, उकलाना, बरवाला, आदमपुर, नलवा, हांसी, बवानीखेड़ा, तोशाम, लोहारू, बाढड़ा, दादरी, नांगल चौधरी नारनौल, पटौदी, बावल, नूंह, पुनहाना, फिरोजपुर झिरका,बड़खल,फरीदाबाद एनआईटी, पृथला ,पलवल, हथीन, होडल और तिगांव हलकों में भाजपा, कांग्रेस और जेजेपी प्रत्याशियों का ऐलान होने के बाद ही चुनावी तस्वीर साफ नजर आएगी। लेकिन अगर इन सीटों मैं से विधानसभा एनआईटी बड़खल ,पृथला ,पलवल बीजेपी के हाथों से दूर जा सकती है40 सीटों पर भाजपा के टिकट के लिए 3 से लेकर 6 मजबूत दावेदार ताल ठोक रहे हैं इसी तरह कांग्रेश की भी डेढ़ दर्जन सीटों पर अलग-अलग खेमों के प्रत्याशी दावा ठोक रहे हैं। इन 60 सीटों पर प्रत्याशियों का चयन ही परिणामों का फैसला करने में निर्णायक साबित होगा।भूपेंद्र हुड्डा के हाथ में कांग्रेस की चुनावी कमान हाथ में आने के बाद उनके समर्थकों में जोश का आलम है और इसलिए कांग्रेश 50 सीटों पर भाजपा को टक्कर देने में सक्षम नजर आ रही है। जेजेपी और बीएसपी का गठबंधन टूटने के कारण भी कांग्रेस को फायदा हो रहा है क्योंकि जाट वोटर कांग्रेस की तरफ ज्यादा जाता हुआ नजर आ रहा है। कई कारणों से भाजपा के पक्ष में चल रही आंधी की रफ्तार धीरे-धीरे कम होती जा रही है और विधानसभा चुनावों का दंगल क्षेत्र, जाति, गोत्र और गांव पर केंद्रित होने के पुराने ट्रेंड की तरफ बढ़ रहा है। भाजपा इस समय विपक्षी दलों पर भारी पड़ रही है लेकिन बदले हुए हालात में अभी वह सिर्फ 30 सीटों पर ही हैवीवेट नजर आ रही है बाकी 60 सीटों पर उसके प्रत्याशियों का चयन ही उसके चुनावी परिणाम को तय करने का काम करेगा। भाजपा के प्रत्याशियों का चयन ही यह तय करेगा कि वह 50 से लेकर 80 सीटों तक कौन से पायदान पर खड़ी होगी। टिकट के दावेदारों की बगावत भाजपा के जीत के रथ को रोकने का कारण साबित होगी। भूपेंद्र हुड्डा और शैलजा की जोड़ी की जुगलबंदी और जेजेपी के पक्ष में जाने वाले बगावती प्रत्याशियों की संख्या भी भाजपा के मिशन को पूरा करने की राह में रोड़ा अटकाते हुए नजर आ रहे हैं। अगर भाजपा ने सिर्फ जीत के लक्ष्य को ध्यान में रखकर प्रत्याशियों का चयन किया तो वह मिशन 75 को हासिल करके ऐतिहासिक सफलता अपने नाम करेगी और अगर हवा हवाई माहौल के बीच गलत प्रत्याशियों का चयन किया गया तो वह जीत सकने वाली कई सीटों से हाथ धो बैठेगी।
यही कहानी कांग्रेस पर भी लागू होने जा रही है। 2 दर्जन सीटों पर उसके प्रत्याशियों पर टकराव आ रहा है। हुड्डा और शैलजा ने अगर जीत के पैमाने को ध्यान में रखकर टिकट दिए तो कांग्रेस 2014 की सीटों से ज्यादा सफलता हासिल करेगी और अगर गलत प्रत्याशियों को टिकट थमा गए तो उसके लिए दहाई का आंकड़ा हासिल करना भी मुश्किल हो जाएगा। पिछली बार मुख्य विपक्षी दल बनने वाली इनेलो सिर्फ ऐलनाबाद में ही सिमटती हुई दिख रही है।
अब देखना यही है कि भाजपा और कांग्रेस कितनी समझदारी या बेवकूफी के साथ टिकटों का वितरण करते हैं टिकटों का वितरण ही विधानसभा चुनाव में सीटों की संख्या तय करने का काम करेगा।