फरीदाबाद एशियन अस्पताल के डॉक्टरों ने एक बार फिर कारनामा करते हुए, 15 वर्षीय इराकी बच्ची को दिया नया जीवन
CITYMIRRORS-NEWS- एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज अस्पताल ने एक बार फिर एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त इराक निवासी 15 वर्षीय बनीन मोहम्मद हमजाह को नया जीवन प्रदान किया। बनीन पिछले एक वर्ष से एप्लास्टिक अनीमिया नामक ब्लड कैंसर की एक जानलेवा बीमारी से पीडि़त थी। इस बीमारी से बनीन की रक्त से कोशिकाएं बनाने की शक्ति समाप्त हो चुक़ी थी और गंभीर संक्रमण या रक्तपात से कभी भी उसकी जान जा सकती थी। ऐसे में उसकी जान बचाने के लिए एकमात्र इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट था, लेकिन बदकिस्मती से मरीज के परिवार के किसी भी सदस्य का उसके साथ जेनेटिक मैच यानि एचएलए मैच नहीं हो रहा था। ऐसे में समस्या गंभीर हो रही थी। इस मुश्किल परिस्थिति में किसी जानकार के बताने पर बनीन के परिजन उसे भारत के फरीदाबाद स्थित एशियन अस्पताल लेकर आए।
बनीन के परिजनों ने एशियन अस्पताल के बोन मैरो ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डॉ.प्रशांत मेहता से परामर्श लिया। डॉ. प्रशांत ने मड ट्रांसप्लांटदरूष्ठ) यानि मैच्ड अनरिलेटिड डोनर दगैर रिश्तेदार डोनर)के लिए खोजबीन शुरू कर दी। इस खोज के दौरान जर्मनी में मरीज से मेल खाता एक डोनर मिल गया। जिसके बाद जर्मनी से डोनर के सैल्स एक खास तरीके से सुरक्षित भारत मंगाए गए और बनीन का बोन मैरो ट्रांसप्लांट सफलता पूर्वक किया गया। उन्होंने बताया कि 3-4 हफ्ते की प्रक्रिया के दौरान मरीज की हाई डोज़ कीमोथेरेपी की गई। इसके माध्यम से मरीज की खराब कोशिकाओं को नष्ट किया गया और डोनर की स्वस्थ्य कोशिकाएं मरीज को दी गईं।डॉ. प्रशांत मेहता ने बताया कि रिश्तेदारों में बोन मैरो का मेल खाना हमेेशा संभव नहीं हो पाता। ऐसे में ब्लड कैंसर और ब्लड की बीमारियों के लिए गैर रिश्तेदार डोनर से ट्रंासप्लांंट करना ही सबसे उत्तम इलाज है। इस तरह का इलाज दिल्ली-एनसीआर के कुछ ही गिने-चुने अस्पतालों में उपलब्ध है, जिनमें एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ एंड कैंसर सेंटर भी एक है। फरीदाबाद में यह पहला ऐसा सेंटर है जहां इस तरह का खास ट्रंासप्लांट सफलतापूर्वक किया गया है और दिल्ली-एनसीआर में पहली बार गैर भारतीय मूल के डोनर का डीएनए लेकर MUD Transplant किया गया है। क्या है MUD Transplant: यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें गैर रिश्तेदार डोनर के डीएनए सैल्स ब्लड ट्रांसफ्यूजन की सहायता से मरीज के शरीर में पहुंचाए जाते हैं। ऐसे में ये कोशिकाएं बोन मैरो में जाकर स्वस्थ्य रक्त कोशिकाएं बनाने में मदद करते हैं। इस प्रक्रिया को एनग्राफ्मेंट का नाम दिया गया एशियन अस्पताल के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. एन के पांडे ने बताया कि पूरे विश्व में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के केवल 45 मिलियन डोनर मौजूद हैं, जो बोन मैरो डोनर बल्र्ड वाइड नामक संस्था से रजिस्टर्ड हैं। इस संस्था के माध्यम से पीडि़त मरीजों को डोनर आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन ऐसी स्थिति में डोनर के मंगाए गए सैल्स को लंबे समय तक सुरक्षित रखना भी अनिवार्य होता है। एशियन अस्पताल में अत्याधुनिक तरीके से क्रायोप्रिजर्वेशन 1/4 cryopreoservation)) की सहायता से सैल्स को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।