यह बेहद जटिल प्रक्रिया थी, जिसके लिए बेहद सावधानी बरतने और कुशल क्लीनिकल विषेशज्ञता की दरकार थी। डॉ. आषीश गुप्ता
CITYMIRRORS-NEWS-फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, फरीदाबाद ने हाल में थैलेसिमिया मेजर की 25 साल की रोगी पर बेहद जटिल सर्जरी सफलतापूर्वक पूरी की। कई बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन करा चुकी इस रोगी की रीढ़ की हड्डी में भी फ्रैक्चर था और उसके दोनों पैरों को भी लकवा मार चुका था। यह सर्जरी सफलतापूर्वक की गई और सर्जरी के बाद रोगी की रिकवरी भी अच्छी हुई और वह बिना किसी सहारे के चलने में सक्षम हो गई। इस टीम का नेतृत्व फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल, फरीदाबाद के न्यूरो सर्जरी एवं स्पाइन डिपार्टमेंट के एडिशनल डायरेक्टर डॉ. आषीश गुप्ता और हिमैटोलॉजी डिपार्टमेंट के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. वी पी चौधरी ने किया। इस रोगी को बाथरूम में गिरने के बाद हुए बेहद गंभीर पीठ दर्द के साथ हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। वह अपने पैरों को हिलाने में भी अक्षम थीं और शुरूआती टेस्ट में खुलासा हुआ कि उनके पैरों में सिर्फ 0/5 ताकत थी यानी उनके पैरों को लकवा मार गया था। बोन मिनरल डेंसिटी के बाद पुश्टि हो गई कि रोगी को ओस्टियोपोरोसिस की समस्या भी थी। रोगी की आगे की जांच के लिए किए गए एक्स-रे और एमआरआई स्कैन में खुलासा हुआ कि डी12 में कंप्रेषन फ्रैक्चर या वर्टिब्रा में कॉलेप्स है।
इस केस में ट्रॉमा के कारण कंप्रेशन और ओस्टियोपोरोसिस के कारण वर्टिब्रा कमजोर हो गया। एमआरआई में यह भी सामने आया कि एक्स्ट्रा मेड्यूलरी हिमैटोपोइस था और वर्टिब्रल बॉडी एवं कैनल स्टेनोसिस में विस्तार था। न्यूरो सर्जरी एवं स्पाइन डिपार्टमेंट के एडिषनल डायरेक्टर डॉ. आषीश गुप्ता ने कहा, ’’थैलेसिमिया के रोगियों पर जटिल सर्जरी करने की सबसे बड़ी चुनौतियों में शमिल है कम हिमोग्लोबिन के कारण एनीमिया और कई बार ट्रांसफ्यूजन शमिल है। इस वजह से रोगियों को एनिस्थिसिया देना काफी मुश्किल हो जाता है। रोगी ओस्टियोपोरोसिस से भी पीडि़त थी, जिससे उसकी हड्डियां भी काफी कमजोर हो गई थीं। ऐसी स्थिति में स्पाइनल इंप्लांट को घुसाना और उसे पर्याप्त सपोर्ट देकर स्पाइन का डिकंप्रेशन करना बहुत मुश्किल हो जाता है। परामर्श के बाद टीम ने पारंपरिक
रवैया अपनाकर सर्जरी करने का फैसला किया क्योंकि अभी तक ऐसे सिर्फ कुछ ही मामले सामने आए थे। इस मैथडोलॉजी का उद्देश्य स्पाइन स्टैबिलाइजेषन एवं जल्द पुनर्वास की खातिर सर्जिकल डिकंप्रेश्न और फिक्सेषन/फ्यूजन करना था। रोगी को गहन आईसीयू केयर में रखा गया और उसे तीन दिन तक आईवी स्टीरॉयड्स और विटामिन डी के साथ एनलजेसिक्स, कैल्शियम सप्लीमेंट्स, पैरों, पीठ के निचले हिस्से की फिजियोथेरेपी की गई और आंतों व ब्लैडर की देखभाल की गई। पोस्ट-ऑपरेटिव पीरियड में रोगी की सेहत में न्यूरोलॉजिकल और लाक्षणिक सुधार देखने को मिले। उनके दोनों पैरों ताकत बेहतर होकर 3/5 हो गई और पहले के मुकाबले उनका दर्द काफी कम हो गया।’’एफईएचएफ के फैसिलिटी डायरेक्टर मोहित सिंह ने कहा, ’’यह बेहद जटिल प्रक्रिया थी, जिसके लिए बेहद सावधानी बरतने और कुषल क्लीनिकल विषेशज्ञता की दरकार थी।