श्रीराम कथा का छठा दिन: जो आदमी सबको ब्रह्म नहीं समझता, वह स्वयं सबसे बड़े भ्रम में है- बापू
- कथा का शंखनाद बुद्धारंभ है, युद्धारंभ नहीं- बापू
- ‘परमात्मा हमारे दिल में छिपा है, हम उन्हें 100 मंदिरों में ढूंढते हैं’
- छठे दिन 12 हजार से ज्यादा लोग कथा सुनने पहुंचे
CITYMIRR0RS-NEWS- श्रीराम कथा के छठे दिन देश-विदेश के विभिन्न प्रांतों से हजारों की संख्या में आए भक्तों का बापू ने अभिनंनद किया। बापू ने कथा की शुरुआत में मानव रचना शैक्षणिक संस्थान का एक बार फिर धन्यवाद किया।
बापू ने दिया भक्त के सवाल का जवाब
बापू से भक्त ने सवाल किया, जब आप आते हैं तो शंख क्यों बजाया जाता है, शंख तो युद्धारंभ पर बजाया जाता है। इस सवाल का बापू ने बेहद खूबसूरत जवाब दिया, उन्होंने इस प्रश्न की प्रशंसा की को बताया, कि शंख नहीं, बल्कि राम मंदिर में बजने वाले शंख की रिकॉर्डिंग बजाई जाती है। उन्होंने कहा, कथा का शंखनाद मंगल नाद होता है। कथा की शंख ध्वनि बुद्ध का आरंभ है, युद्ध का नहीं।
समंदर उलटा सीधा बोलता है,
सलीके से तो प्यासा ही बोलता है
बापू ने कथा के दौरान सभी भक्तों को खुशी से जीने के लिए प्रेरित किया। बापू ने सभी से खुद को प्रेम करने के लिए प्रेरित किया। कहा—हमारे अंग की रचना, हमारी रचना, हमारे परमात्मा ने किया है। स्वयं को सराहो,स्वयं को प्यार करो। इसके आगे बापू ने कहा- सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग।
बापू ने छठे दिन की कथा में रावण के विशेष उल्लेख में कथा सुनाई। रावण की प्रबल इच्छा थी, कि जानकी, उनके ईष्ट देव के रूप में हनुमान तथा श्री राम उनकी लंका में पधारें। दशानन अभिनंदन करना चाहते थे। उन्होंने इसलिए सीता मैया का हरण किया। वह तीन प्रकार का अभिनंदन करना चाहते थे–, पहला-व्यक्तिगत अभिनंदन श्रीराम का, दूसरा- पारिवारिक अभिनंदन सीता माता का, तीसरा – नागरिक अभिनंदन ईष्ट देव रूप में हनुमान का। बापू ने रावण की शिव आराधना के उल्लेख किया।
एक सेठ और चोर की रोचक कहानी के माध्यम से बापूजी ने सभी भक्तजनों के मानस पटल पर यह बात अंकित की, ‘परमात्मा हमारे अंदर है, हम उसे बाहर क्यों ढूंढें’। एक हरि नाम, एक हनुमान, ये दो ऐसे गुम हैं, जो मानव को चारों गुणों के प्रभाव के दबा सकते हैं। बापू ने द्वापर के लक्षण का वर्णन किया। बापू ने बताया कि, द्वापर में ह्रदय में हर्ष व भय दोनों एक साथ आते हैं। न हनुमान बंदर हैं, न हनुमान देव हैं, न हनुमान मनुष्य हैं, हनुमान चारों युगों के गुणों के प्रभाव को दबा सकते हैं।
बापू ने इस दौरान एक भक्त की कविता पढ़कर सुनाई
मुझे कौन पूछे अगर तू न हो,
ये दिल रोज टूटे अगर तू न हो,
अना ही अना है बंदों में तेरे
यहां कौन सही सोचे अगर तू न हो
मुझे कौन पूछे अगर तू न हो,
ये दिल रोज टूटे अगर तू न हो,
चरागों का गम मुझे खा रहा है,
ये हवा यहां कौन रोको अगर तू न हो,
ये तनहाई गूंगी, है बहरा सफर
करूं बात किससे अगर तू न हो
मुझे कौन पूछे अगर तू न हो,
ये दिल रोज टूटे अगर तू न हो,