चीन की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए केंद्र सरकार को भारतीय उद्योगों के बढ़ावा और नियम सरल करने होंगे। आशीष जैन
Citymirrors-news-चीन ने गलवन घाटी में जो कायरतापूर्ण हरकत की उसने भारतीयों के मन को आक्रोश से भर दिया है। जनभावना का उबाल चीनी वस्तुओं के बहिष्कार के रूप में हमारे सामने है। कोरोना महामारी के कारण विश्व के देशों का तो चीन के प्रति नजरिया बदला ही है, भारत भी समझ गया है कि ‘हिंदी-चीनी, भाई-भाई’ नहीं हो सकते। कई विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का चीन पर बहुत अधिक आर्थिक प्रभाव नही पड़ेगा, क्योंकि चीन अपने कुल निर्यात का केवल तीन प्रतिशत ही भारत को निर्यात करता है। मात्रा में भले ही यह प्रभाव कम हो, परंतु फर्क तो पडे़गा ही।
यह कहना है फरीदाबाद चेंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के महासचिव आशीष जैन का। उन्होंने कहा है कि यदि दोनों देशों के बीच जारी हालात सामान्य नहीं होते तो इसका प्रभाव दोनों देशों के व्यापार पर पड़ेगा। प्रश्न यह है कि क्या चीनी सामान के बहिष्कार के लिए हमारी तैयारी पूरी है? क्या हम इस चुनौती से लड़ने के लिए तैयार हैं? इसे समझने के लिए हमें दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को समझना होगा
भारत वित्त वर्ष 2022 से उस देश के साथ अपने व्यापार घाटे को $ 8.4 बिलियन या उसके घाटे का 17.3% कम कर सकता है, वही रसायनों, मोटर वाहन घटकों, साइकिल भागों, कृषि-आधारित वस्तुओं, हस्तशिल्प, औषधि निर्माण, सौंदर्य प्रसाधनों जैसे क्षेत्रों से आयात के अधीन के माध्यम से। , उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और चमड़े पर आधारित सामान, लगभग 40 उप-क्षेत्र हैं जिनमें चीन पर आयात निर्भरता कम करने की क्षमता है। इन क्षेत्रों में चीन से 33.6 बिलियन डॉलर के आयात का योगदान है और इनमें से लगभग 25% आयात स्थानीय विनिर्माण द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है बिना किसी अतिरिक्त निवेश के। भारत की जीडीपी को बचाने में “इससे अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि राजस्व का समतुल्य परिमाण न केवल एमएसएमई सहित घरेलू उद्यमों के कारोबार में जोड़ा जाएगा, बल्कि आगे और पिछड़े लिंकेज के माध्यम से लाभ के लिए अनुवाद करने की संभावना है, लागत के साथ पैमाने की बेहतर अर्थव्यवस्थाएं।” प्रतिस्पर्धा और महत्वपूर्ण रूप से, रोजगार सृजन का दायरा बढ़ाने और आर्थिक वृद्धि हासिल करना भारत रसायन जैसे क्षेत्रों में आयात को कम कर सकता है जहां यह दुनिया का छठा सबसे बड़ा रासायनिक निर्माता है। इसी तरह, फार्मास्युटिकल उद्योग थोक दवाओं (एपीआई) और अन्य मध्यवर्ती कच्चे माल का आयात $ 2.6 बिलियन से अधिक सालाना करता है, ताकि हम अपने स्थानीय दवा उद्योग की मांग से अपने रासायनिक उद्योग को बढ़ा सकें और चीन पर निर्भरता कम कर सकें। चीन से भारत का आयात वित्त वर्ष 2020 में 65.1 बिलियन डॉलर और निर्यात 16.6 बिलियन डॉलर था, जिसका व्यापार घाटा 48.5 बिलियन डॉलर था। चीनी आयात ने भारत के कुल व्यापार घाटे का 30% से अधिक का योगदान दिया। आशीष जैन ने कहा है कि भारतीय उद्योग के पास अपने हितों को सफलतापूर्वक सुरक्षित रखने और चरणों में चीन के आधार पर भारत की निर्भरता को कम करने का केंद्र है। सरकार और उद्योग दोनों से रणनीतिक इरादे और अत्यधिक कैलिब्रेटेड दृष्टिकोण के साथ, भारतीय अर्थव्यवस्था एक नई कथा देख सकती है जो न केवल अपने व्यापार घाटे को कम कर सकती है, बल्कि नए निजी क्षेत्र के निवेश और भविष्य के आर्थिक विकास के लंबे समय से प्रतीक्षित चक्र को भी किकस्टार्ट कर सकती है। आशीष जैन ने कहा है कि भारत कच्चे माल के रूप में भी चीन से सामान आयात करता है जैसे विद्युत मशीनरी, ऑप्टिकल और फोटोग्राफिक उपकरण, रसायन आदि। जैसे भारत का हर बाजार चीनी वस्तुओं से भरा पड़ा है वैसे ही मोबाइल प्लेटफॉर्म भी चीनी एप से भरे हुए है। लॉकडाउन में भारत सहित जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है, अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं तब चीन अपने एप और ऑनलाइन गेम से कमाई कर रहा है। जब तक चीन की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए केंद्र सरकार जब तक कोई रणनीति नही बनाईगी । हम चीन को कमजोर नही कर सकते।