मानव अधिकार आयोग का बड़ा फैसला, बच्चे की मौत पर डीसी दफ्तर पर ठोंका पांच लाख का जुर्माना।
Citymirror.in-हरियाणा मानव अधिकार आयोग ने जींद के एक मामले का निर्णय करते हुए हरियाणा सरकार के दोषी कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही के साथ प्रार्थी को 5 लाख का मुआवजा देने का निर्देश दिया है । जींदके एक गरीब बच्चे के इलाज के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा दी गई एक लाख की सहायता को उपायुक्त कार्यालय जींद के कर्मचारियों द्वारा पहुंचाने में देरी कर दी, जिसकी वजह से बीमार बालक पुनीत की मौत हो गई । मामलाजनवरी 2018 का है , जब 12 जनवरी 2018 को मुख्यमंत्री हरियाणा के कार्यालय ने चंडीगढ़ से ₹100000 का चेक उपायुक्त जींद के पास भेज था और उस राशि को प्रार्थी दिनेश को देने के लिए कहा था , ताकि गंभीर बीमारी से जूझते हुए उसके बेटे पुनीत का इलाज हो सके। मुख्यमंत्री का चेक रिकॉर्ड के मुताबिक 17 जनवरी 2018 को उपायुक्त कार्यालय में पहुंच भी गया था और 18 जनवरी को उपायुक्त के आदेश के अनुसार बैंक में उपायुक्त के अकाउंट में जमा कर दिया गया था !
उपायुक्त ने अपने आदेश में नाज़र ब्रांच को धनराशि प्रार्थी तक पहुंचाने का आदेश दिया था , परंतु पैसे बैंक में पहुंचने के बाद उपायुक्त कार्यालय के कर्मचारियों ने पैसा प्रार्थी दिनेश तक नहीं पहुंचाया । जिसकी वजह से पैसे के अभाव के चलते इलाज न हो सका तथा प्रार्थी का पुत्र पुनीत 23 जनवरी 2018 को चल बसा ।
प्रार्थी ने अपनी शिकायत हरियाणा मानव अधिकार आयोग के समक्ष रखी जिस पर हरियाणा मानव अधिकार आयोग ने संज्ञान लिया तथा उपायुक्त कार्यालय से जवाब तलब किया गया तथा उपयुक्त के कर्मचारियों को बुलाकर उनसे मामले के तथ्यों की जानकारी ली गई।
आयोग के प्रश्नों का उत्तर उपायुक्त कार्यालय के कर्मचारी संतोष पूर्ण ढंग से नहीं दे पाए तथा कोई भी ऐसा रिकॉर्ड नहीं दिखा पाए जिससे वह सिद्ध करते कि उन्होंने प्रार्थी को सहायता राशि समय पर पहुंचाने का कोई भी प्रयास किया ।
रिकॉर्ड के मुताबिक 3 महीने तक कर्मचारियों ने प्रार्थी को पत्र तक नही लिखा और न ही उसके नाम का कोई चेक बनाया । प्रार्थी ने आरोप लगाया कि उसके कई बार चक्कर कटवाए गए , परंतु सहायता राशि नही दी गई । उपायुक्त कार्यलय के कर्मचारियो ने एक पत्र 12-4-2018 को प्रार्थी को लिखकर खानापूर्ति करने का प्रयास किया कि वह आकर अपने पुत्र के इलाज के लिये मुख्यमंत्री से आई सहायता की राशि को कार्यालय से ले ले जबकि प्रार्थी का पुत्र जनवरी 2018 में ही चल बसा था।
मानव अधिकार आयोग हरियाणा द्वारा कर्मचारियों से सवाल जवाब करने पर पता चला कि पैसे उपायुक्त कार्यालय में आने के बावजूद कर्मचारियों ने कभी चेक बनाया ही नहीं था तथा 3 महीने तक प्रार्थी को कोई आधिकारिक सूचना तक नही दी गई और सहायता का पैसा को मुख्यमंत्री कार्यालय को मई 2018 में लौटा दिया गया ।
मानव अधिकार आयोग के चेयरमैन भू. पु. मुख्य न्यायधीश जस्टिस एस के मित्तल व सदस्य दीप भाटिया ने इस विषय को बहुत गंभीरता से लिया और 8 अक्टूबर 2018 को जींद के उपायुक्त को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा था। उपायुक्त ने अपने जवाब में किसी भी देरी का खंडन तो किया परंतु कोई भी साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया जिससे यह पता चले कि कार्यालय की तरफ से प्रार्थी को धन देने का प्रयास किया गया था जो एक मात्र पत्र दिखाया गया वह 3 महीने बाद का था इस पर आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए कार्यालय के कर्मचारियों को दोषी माना तथा हरियाणा सरकार को मुख्य सचिव के माध्यम से आदेश दिया कि प्रार्थी के पुत्र की मृत्यु की एवज में प्रार्थी को ₹500000 का हर्जाना दिया जावे तथा हर्जाने की भरपाई हरियाणा सरकार उन कर्मचारियों से रिकवर के करें जो इन्क्वायरी में इस देरी के लिए दोषी पाए जाए ।
आयोग ने इस बात पर आश्चर्य वक्त किया कि चंडीगड़ स्तिथ मुख्य मंत्री के कार्यलय से तो महज 5 दिन में चेक जींद पहुंच गया था पर डी सी ऑफिस के कर्मचारियों ने जींद में ही तीन महीने लगा दिया। आयोग ने हरियाणा सरकार को यह भी आदेश दिया है कि आगे से ऐसे गरीब व जरूरतमंद लोग जो सरकार से सहायता की अपेक्षा रखते हैं यदि उनकी सहायता स्वीकृत हो जाती है तो उसको देने में देरी ना करी जाए तथा यथाशीघ्र ऐसे मामलों में प्रार्थी तक स्वीकृत सहायता पहुंचाने का प्रयास किया जाए।यह निर्णय अपने आप में एक ऐतिहासिक निर्णय जिसमें सरकारी कर्मचारियों के निरंकुश रवैये के ऊपर आयोग द्वारा लगाम लगाने का प्रयास किया गया है