युवाओं में बढ़ रहा पार्किंसंस रोग ।डा. रोहित गुप्ता
CITYMIRR0RS-NEWS- सेक्टर 16ए स्थित मेट्रो अस्पताल की ओर से शहर के एक होटल में सेमिनार का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ रोहित गुप्ता मुख्य अतिथि उपस्थित रहे। डॉक्टर व मरीजों को पार्किंसंस बीमारी के जागरुक करते हुए उन्होंने कहा कि पार्किसंस दिमाग से जुड़ी बीमारी है, जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों की गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। डॉ रोहित गुप्ता ने बताया कि हमारे दिमाग में न्यूरॉन कोशिकाएं डोपामीन नामक एक रासायनिक पदार्थ का निर्माण करती हैं। जब डोपामीन का स्तर गिरने लगता है, तो दिमाग शरीर के विभिन्न अंगों पर नियंत्रण खो देता है। 5 साल पहले यह बीमारी उम्रदराज लोगों को होती है, लेकिन वर्तमान में युवाओं में भी यह मर्ज देखने को मिल रहा है। विश्व में लगभग 70 लाख लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं। उन्होंने कहा कि इसका कारण बुजुर्गों की संख्या का बढऩा है। पार्किंसंस बीमारी को अक्सर डिप्रेशन या दिमागी रूप से ठीक न होने की स्थिति से जोड़ा जाता है, लेकिन इस बीमारी से पीडि़त रोगी मानसिक रूप से विकलांग नहीं होते हैं। उन्हें समाज से अलग नहीं देखना चाहिए। शुरुआती स्टेज पर डॉक्टर लक्षणों को समझने के लिए रोगी को दवाईयां देते है, लेकिन दवाओं के प्रभावी न होने और इनके साइड इफेक्ट के सामने आने पर अंत में डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस) थेरेपी काफी कारगर साबित हुई है।
रोग की पहचान–पार्किन्संस की पहचान करना आसान नहीं है। इसके लिए कोई लैब नहीं होती है कि इसे समझा जा सके। आमतौर पर इसके लक्षण और रोगी की हालत देखकर ही इस रोग के बारे में बताते हैं। न्यूरोफिजीशियन अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर और रोगी के परिजनों से बात कर इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि व्यक्ति पार्किंसन्स से पीडि़त है या नहीं।
इलाज-पार्किन्संस रोग का उपचार न्यूरो फिजीशियन करते हैं। इस रोग के विभिन्न लक्षणों के लिए विभिन्न प्रकार की दवाएं दी जाती हैं। कुछ समय के बाद रोगी पर किसी दवा का असर नहीं भी हो सकता है। दवा के इस्तेमाल से रोगी में जो लक्षण खत्म हो जाते हैं, वे धीरे- धीरे बढऩे लगते हैं। इस कारण कुछ रोगियों में दवा की खुराक में लगातार वृद्धि करनी पड़ सकती है। डॉ रोहित गुप्ता ने कहा कि जिन रोगियों पर दवा का असर नहीं होता है या दवा का अधिक दुष्प्रभाव होता है, उनके लिए सर्जरी उपयुक्त है। पार्किन्संस का इलाज करने के लिए डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस) सबसे मुख्य सर्जरी है। इस सर्जरी से शरीर की विविध गतिविधियों से संबंधित लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। डीबीएस के तहत मस्तिष्क में गहराई में इलेक्ट्रोड के साथ बहुत बारीक तारों को प्रत्यारोपित किया जाता है। इलेक्ट्रोड और तारों को सही जगह पर प्रत्यारोपित किया जा रहा है या नहीं, इसे सुनिश्चित करने के लिए मस्तिष्क की एमआरआई और न्यूरोफिजियोलॉजिकल मैपिंग की जाती है। इलेक्ट्रोड और तारों को एक एक्सटेंशन से जोड़ दिया जाता है। यह एक्सटेंशन कान के पीछे और गर्दन के नीचे होता है। इलेक्ट्रोड और तार एक पल्स जनरेटर (एक डिवाइस) से जुड़े होते हैं, जिसे सीने या पेट के क्षेत्र के आसपास त्वचा के नीचे रखा जाता है। जब डिवाइस को ऑन किया जाता है, तो इलेक्ट्रोड लक्षित क्षेत्र के लिए उच्च आवृत्ति का स्टीमुलेशन भेजता है। यह स्टीमुलेशन पार्किन्संस के लक्षणों वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में कुछ इलेक्ट्रिक सिग्नल को परिवर्तित करता है।