लघु उद्योग भारती ने परिभाषा में बदलाव लाने पर भारत सरकार के प्रति अपना विरोध प्रकट किया ।
Citymirrors-news-लघु उद्योग भारती (एमएसएमई) ने परिभाषा में बदलाव लाने पर भारत सरकार के प्रति अपना विरोध प्रकट किया है। लघु उद्योग भारती के अ.भा. महामंत्री गोविंद लेले व स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ. अश्वनी महाजन ने संयुक्त रूप से भारत सरकार से मांग की है कि देश में स्वतंत्र सूक्ष्म व लघु उद्योग नीति बनाई जाए व मध्यम उद्योग क्षेत्र एवं इंटरप्राईजेज शब्द को (एमएसएमईडी) एक्ट से अलग किया जाए तथा इसका नाम माइक्रो एंड स्मॉल इंडस्ट्री एक्ट (एमएसआई) एक्ट हो। देश में स्वतंत्र सूक्ष्म व लघु उद्योग नीति बनाई जाए तथा मध्यम उद्योग क्षेत्र एवं इंटरप्राईजेज शब्द को (एमएसएमईडी) एक्ट से अलग किया जाए तथा इसका नाम माइक्रो एंड स्मॉल इंडस्ट्री एक्ट (एमएसआई) एक्ट हो। सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों की परिभाषा वर्तमान में जारी प्लांट एवं मशीनरी में पूंजी निवेश राशी पर आधारित ही बनाये रखा जाए। इसकी पूंजी निवेश राशि की सीमा इस प्रकार हो 25 लाख, 5 करोड़, 10 करोड़ , सूक्ष्म उद्योग रुपये 50 लाख तक, लघु उद्योग रुपये 50 लाख से अधिक रूपये 5 करोड़ से कम हो। इसके अतिरिक्त (एमएसआई) एक्ट में ‘भारतीय स्वामित्व एवं प्रबंधन’ की शर्त अनिवार्य रूप से लागू हो। वहीं लघु उद्योग भारती के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य अरुण बजाज का कहना है कि एमएसएमई की परिभाषा में इस बदलाव की चर्चा 2015 से हो रही है। सूक्ष्म व लघु उद्योग क्षेत्र में बड़े एवं राष्ट्रीय संगठन के रूप में लघु उद्योग भारती इस बारे में समय-समय पर अपना मत व्यक्त करते हुए क्षेत्र के हितों की रक्षा हेतु सरकार के साथ विचार-विमर्श में चल संलगन रही है। केंद्र सरकार (एमएसएमईडी) एक्ट 2006 में बदलाव कर सूक्ष्म एवं लघु एवं मध्यम उद्योग की परिभाषा, वार्षिक बिक्री पर आधारित करने का प्रस्ताव ला रही है। देश में सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों के संरक्षण एवं संवद्र्धन हेतु पृथक लघु उद्योग मंत्रालय का गठन 1999 में किया गया था। यह क्षेत्र देश में कृषि के बाद सर्वाधिक रोजगार का सृजन करता है। बाद के वर्षों में सेवा उद्योग एवं मध्यम उद्योग को इसमें शामिल करने से व एमएसएमई एक्ट 2006 में इंटरप्राईज शब्द के समावेश से यह मुहिम कमजोर हुई। इन सब परिवर्तनों से सन् 2006 से लेकर अब तक देश में स्वरोजगार में 10 प्रतिशत की कमी आई है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन द्वारा जारी (एनएसएसओ) विवरण इस बात की पुष्टि करते हैं। स्वरोजगार घटने से रोजगार सृजन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और बेरोजगारी बढ़ती है। वैश्विक स्तर पर यह माना गया है कि सूक्ष्म एवं लघु उद्योग विकेंद्रित अर्थव्यवस्था को बल देते हैं एवं ग्रामीण क्षेत्र में युवाओं का शहरों में पलायन कम करते हैं। देश की युवा जनशक्ति के समावेशी उपयोग संतुलित विकास एवं एवं (जीडीपी) में वृद्धि हेतु सूक्ष्म लघु उद्योगों को प्राथमिकता एवं संवर्धन अत्यावश्यक है।